तुम बढ़ो,
कदम-दर-कदम इतना
कि हर साज़ हो तुमसे
साज़ का आग़ाज़ भी तुमसे
साज़ का आग़ाज़ भी तुमसे
हर गीत हो तुमसे, और
गीतों के अल्फ़ाज़ भी तुमसे
मेरी हर जीत हो तुमसे, और
जीत का अंजाम भी तुमसे
हर महफिल भी तुमसे, और
महफ़िल-ए-खास भी तुमसे
नियति के पास हो जितना
जो हो किसी का सपना
तुम बढ़ो,
कदम-दर-कदम इतना।
हर जज्बात में जो शामिल हो
हर ख़यालात के जो क़ाबिल हो
वो तुम हो, वो तुम हो ,वो तुम हो।
अब, जब तुम हो सामने
तो कह दूँ हर वलवला तुमसे
ये हाल है तुमसे
ये नयी-नयी फितरत भी तुमसे
मेरी ग़ज़ल भी तुमसे
और कविता भी तुमसे
साज़ भी, आवाज़ भी
और अंदाज़ भी तुमसे
मेरे रिश्ते नाते भी तुमसे
मेरी मंज़िल के रास्ते भी तुमसे
जब मेरा सबकुछ है तुमसे
तो क्यूँ नहीं तुम मुझसे।।
मैंने सोचा-नदी की धार है तुमसे
मैंने माना- फ़िज़ा की बहार है तुमसे
मैंने देखा- चाँदनी बार-बार है तुमसे
मैंने चाहा- मेरा संसार हो तुमसे
मैंने कहा जो बार-बार है तुमसे
के सबकुछ है तुमसे
तो फिर
क्यूँ नही तुम मुझसे
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