दो कदम बस संग चली
ये ज़िन्दगी बे-मन चली
.................................on feeling tired in thoughts of frenz
i don't know why........but why?
कहता था कि रोये मेरे दुश्मन। …………… क्या जानता था वो मैं ही हूँ?
मन हो रहा है उन सबको बुला-२ के, हॉस्टल में दौड़ा-२ के, उठा-२ के, पटक-२ के,
पहले पीटू
फिर कह दूँ..........
"भाड़ में जाओ। "
न-मालूम था, ये नमक-हराम होंगे
ये माकूल मुकम्मल-ख़ास नहीं आम होंगे
खैर , अब मिलेंगे तो पहचानेंगे नहीं
पक्का..........
माँ ने फोन पर पूँछा - घर कब आओगे , तुम्हारा एग्जाम कब तक चलेगा ?
और मैंने बक दिया २ जून तक
सोचा था सब अंतिम बार एक-साथ हॉस्टल में gun मचाएंगे
VT पे मौज़ मनाएंगे
एक बार पनीर की सब्जी और चावल बनाएंगे
मिल-बाट के नहीं छीन-२ के खाएंगे
चले गए कमीने अकेला छोड़ के
………
..........
अब झेलेंगे अपनी बला से
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