Friday, 6 June 2014

अच्छा लगा

कभी कविता में अतीत से टकराना 
कभी लेखो की शफ़ों में डूब जाना 
रहना जहाँ में वंचित अपने प्राप्य से
और जुड़ जाना माओ लाल-सलाम से

अलगाव का यह भाव अच्छा लगा 
आत्म-रक्षा का यह दाँव अच्छा लगा 

उपज-हताशा ह्रास-संस्कृति की 
हथियार, लालच, उत्पीड़न की 
यह न्याय औ समता का आधार हो न हो 
कारण अबला के दोहन का बारम्बार हो न हो 

ग्रसित मनुजता का यह नाव अच्छा लगा 
प्रगति का यह अनुभाव अच्छा लगा 

तम वन में दरख्तो पर बुद्ध औ गांधी
आत्म-हत्या के लिये है डाल ली फाँसी 
अनहद नाद गूँजती है हवा की गूँज से 
कह रहा माओ सत्ता आती है बन्दूक से  

ज्ञान का यह प्रतिबिम्ब अच्छा लगा 
धरा पे शर्म का यह धुंद अच्छा लगा 

पैसा-पॉवर-फ्री सेक्स का प्रस्ताव अच्छा लगा 
या तथा-कथित राष्ट्र-रक्षा का दांव अच्छा लगा 

वर्तमान को अतीत का आधार अच्छा लगा 
भविष्य को आज का यह द्वार अच्छा लगा 

-प्रदीप 

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