थे कभी हम-बिन नहीं जो सब्र कर पाते।
नहीं थी बादशाहत बिन-हमारे बज़्म में उनके
ग़लत-फ़हमी नहीं के कभी वे कुफ़्र कर पाते।
तख़य्युल में तग़ाफ़ुल है हकीकत तो है ख़स्ताहाल
दिल-ए-कद्र-ए-सुखन के नहीं वो अब्र रह पाते।
बेकद्रो सी भी वो नहीं अब क़द्र कर पाते
थे कभी हम-बिन नहीं जो सब्र कर पाते।
@प्रदीप
थे कभी हम-बिन नहीं जो सब्र कर पाते।
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