कोशिश यही है
ना मैं तेरा संग चाहता हूँ
ना ही तेरा संगम चाहता हूँ
तेरे साथ हो हरदम
ये एहसास मेरे हमदम चाहता हूँ
तुमको आजमाने के बहाने लाख हैं लेकिन
तुझे अब आजमाने की मेरी कोशिश नहीं है
मेरी गुस्ताखियों को यूँ अगर ना माफ़ करती
मुझे दो लफ्ज़ कहकर तुम अगर नाशाद करती
सामने तुम मेरे आमीन ना आदाब करती
तो कहता मैं -"मेरे , ऐ ! हमनशीं
तेरे अब पास आने की मेरी कोशिश नहीं है "
हँसी गुस्ताख़ थी तेरी ये कैसे मान लूँ
आशिक़ी भी बेवज़ह थी मैं कैसे मान लूँ
तूने हाँ कहा या ना वो कैसे जान लूँ
जो तूने ना कहा था तभी रूख मोड़ते लेकिन
तुझे अब छोड़ जाने की मेरी कोशिश नहीं है
मैं मेरी उमंग चाहता हूँ
तरंग तेरी संग चाहता हूँ
मेरी हर कोशिशें तुम तक
हाँ,
तुम बिन भी तेरा संग चाहता हूँ
ज़माने को दिखाने के बहाने लाख हैं लेकिन
तेरे अब साथ भी जी लूँ मेरी कोशिश यही है
-प्रदीप
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