Monday, 2 November 2020

निजी न्यूज़ नौटंकी

 हमरे गउंवां के खलिहर बकैती के जइसन, 

जइसे कुक्कुरिया भोकौती करें, 

अउर कउवन के करकस ककैती के जइसन, 

तू कहबू जवन हम उहे मान लेब, 

तोहरे बकला पे एतना त सम्मान देब.

©स्वयं

Thursday, 29 December 2016

मरना ही जब हासिल है तो..जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

मरना ही बस हासिल है तो

जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

चलती का नाम ही गाड़ी है

तो रस्ता क्या कहलाता है ?

अब तलक नहीं क्यूँ कल आया ?

क्यूँ आज यूँहीं बीता जाता है ?

वो क्या? जो खुशवास करे

फिर क़र्ज़ वही हो जाता है।

दुःख शामिल होगा, तो होगा

क्यूँ दर्द पराया लगता है ?

*** *** *** ***

मरना ही जब हासिल है

तो जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

@प्रदीप कुमार सिंह

Wednesday, 18 May 2016

Manish chandra ne question paper bta diya krishak aandolan bhartiy swantantrata aandolan me krishak ki bhumika krishak sanrachna agrarian class and community  ab kaun kya ukhadega ? Amarnath pas kar gaye ,,, khair ye to hota hi hai .. power ese istemal nhi krte '''

Saturday, 27 February 2016

न होना था और जो हुआ भी नही


तेरे होने से इतना यकीं हो रहा है,
ना होना था जिसको वही हो रहा है।

तेरे ख़्वाबों में अक्सर  गुजरी हैं रातें,
मेरे दिन में भी अक्सर यही हो रहा है।

तु कहती नही फिर भी सुनता हूँ मैं,
जो कहते हैं सब बस वही हो रहा है।

Tuesday, 16 February 2016

मगर दिल ?


जो किसी दुःख के होने पर - मेरे रोने पर,
मुझे ढाढ़स देते थे - साहस देते थे,
वो भी छूट गए न जाने कहाँ ?

इसका दुःख भी हुआ करता था,
मैं इसको भी सहा करता था,
और ग़फ़लत में रहा करता था,
कि कभी-न-कभी तो ये होना है,
''फिर मिलेंगें'' तो फिर क्यूँ रोना है ?

पर देखो ढाढ़स को भी साहस नहीं ,
यकीं को भी राहत नहीं ,
मैं निरा आदमी - और कोई नहीं।

वो अश्क़ - जो हर बार बहते थे ,
बेवज़ह जारोकतार रहते थे ,
वो भी छूट गए - जाने क्यूँ रूठ गए ,
अब भी उनपे कोई अख़्तियार नहीं ,
देखो मुझे, मैं निरा आदमी - कोई मेरा यार नहीं।

जो राहे-मंजिल थी - मुड़ गयी ,
मैं अवाक्-हताश, भाव-भंगिमा तक उड़ गयी ,
अब तो कुछ भी नही मेरे पास,
न मेरे दोस्त, न अपने, न आँशू,
ना मेरी भाव-भंगिमा, न मेरा मैं.

''मगर दिल ?''
- अरे!
सारी फ़साद यही है।

Monday, 18 January 2016

दुनियाँ बहुत खूबसूरत है,
और ज़िंदगी बहुत छोटी,
यहाँ हर शख़्स का ईमान है-
उसी की नक़ाबपोशी,
तो पहले कमियाँ तलाश लो,
फिर तय करो दोस्ती।
@ प्रदीप

Wednesday, 28 October 2015

उनकी यादों से(कफ़ील आज़र अमरोवी)
ज़िंदगी के पेड़ से 
एक पत्ता और गिर कर 
ढेर में ग़ुम हो गया है 
ढेर उन पत्तों का जो पहले गिरे थे 
हँस रहा है 
ज़िंदगी का पेड़ खुश है 
जैसे उसका बोझ हल्का हो गया है