Thursday, 29 December 2016

मरना ही जब हासिल है तो..जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

मरना ही बस हासिल है तो

जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

चलती का नाम ही गाड़ी है

तो रस्ता क्या कहलाता है ?

अब तलक नहीं क्यूँ कल आया ?

क्यूँ आज यूँहीं बीता जाता है ?

वो क्या? जो खुशवास करे

फिर क़र्ज़ वही हो जाता है।

दुःख शामिल होगा, तो होगा

क्यूँ दर्द पराया लगता है ?

*** *** *** ***

मरना ही जब हासिल है

तो जीवन क्यूँ मिल जाता है ?

@प्रदीप कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment