मरना ही बस हासिल है तो
जीवन क्यूँ मिल जाता है ?
चलती का नाम ही गाड़ी है
तो रस्ता क्या कहलाता है ?
अब तलक नहीं क्यूँ कल आया ?
क्यूँ आज यूँहीं बीता जाता है ?
वो क्या? जो खुशवास करे
फिर क़र्ज़ वही हो जाता है।
दुःख शामिल होगा, तो होगा
क्यूँ दर्द पराया लगता है ?
*** *** *** ***
मरना ही जब हासिल है
तो जीवन क्यूँ मिल जाता है ?
@प्रदीप कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment