रह-रह के उसे सोचनें को
न वक़्त रहा, ना ही कोई याद आती है
मगर जब लिखता हूँ तो
हर दफ़ा इक फ़साद होती है
जैसे, न बचा है नौ-मन तेल
न राधा नाच पाती है
-प्रदीप
न वक़्त रहा, ना ही कोई याद आती है
मगर जब लिखता हूँ तो
हर दफ़ा इक फ़साद होती है
जैसे, न बचा है नौ-मन तेल
न राधा नाच पाती है
-प्रदीप
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