Sunday, 29 June 2014

हो गए हम बंजारे

हो गए सब बंजारे 
नींद के मारे है सारे 
हर डगर हारे है सारे 
 बीज स्वप्नों के पले जो 
हो गए सब बंजारे 
दो कदम के हमसफ़र हम 
तब ना सोचे थे मगर अब 
छुट गए है सब सहारे
हो गए हम बंजारे 
थी मसर्रत हर ज़रर में 
खार भी बेकार थे 
छिप गए सारे नज़ारे 
हो गए सब बंजारे 
हो गए..............
@ प्रदीप

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