Thursday, 29 May 2014


दो कदम बस संग चली 
ये ज़िन्दगी बे-मन चली 
.................................on feeling tired in thoughts of frenz
i don't know why........but why?
कहता था कि रोये मेरे दुश्मन। …………… क्या जानता था वो मैं ही हूँ?
मन हो रहा है  उन सबको बुला-२ के, हॉस्टल में दौड़ा-२ के, उठा-२ के, पटक-२ के, 
पहले पीटू 
फिर कह दूँ.......... 
"भाड़ में जाओ। "

न-मालूम था, ये  नमक-हराम होंगे 
ये माकूल मुकम्मल-ख़ास नहीं आम होंगे 

खैर , अब मिलेंगे तो पहचानेंगे नहीं 
पक्का.......... 


माँ ने फोन पर पूँछा - घर कब आओगे , तुम्हारा एग्जाम कब तक चलेगा ?
और मैंने बक दिया २ जून तक 
सोचा था सब अंतिम बार एक-साथ हॉस्टल में gun मचाएंगे 
VT पे मौज़ मनाएंगे 
एक बार पनीर की सब्जी और चावल बनाएंगे 
मिल-बाट के नहीं छीन-२ के खाएंगे 
चले गए कमीने अकेला छोड़ के 
……… 
..........  
अब झेलेंगे अपनी बला से 

Sunday, 25 May 2014

प्यार का शायक़ बनूँ , और क़द्र के लायक रहूँ ;
इस भरम की चाल में , दिल का प्यादा भी गया।

सर लफ्ज़ का खाली गया , दिल भी सादा ही गया;
हो किसी से इश्क़ मुझको , वो इरादा भी गया।

-प्रदीप