इन्कलाब तू जगा
इक रात ज्योंही आँख लगी थी,
सपनों की इक साख जगी थी ,
सपने बहुतेरे ही आये ,
जैसे तेरी प्यास जगी थी .
स्तब्ध निशा की एक घड़ी में ,
सारी बातें एक लड़ी में ,
मुझको थे बतलाने आये ,
देश-द्रोह हर कड़ी-कड़ी में.
फिर मुझसे बातें राग-द्वेष की ,
बापू, सुभाष ,आज़ाद शेष की ,
सिंह भगत जी करने आये
चिंतन प्यारे हिन्द-देश की.
"हे! माँ के पूत सपूत बनो
दुर्बल मत मजबूत बनो
भारत-भाग्य-विधाता के
तुम्ही प्रथम अग्रदूत बनो।''
''जाओ जन-सैलाब जनो
माँ के लाले आब बनो
हिमाद्रि-तुंग सम सभी के
सामने बस आप तनो।''
''क्यूँ इश्क मुहब्बत लिखते हो
क्यूँ आशिक़ जैसे दिखते हो
लिक्खो उस पर ताड़-ताड़
जो ख़बर यहाँ पर बिकते हो।''
''वीर सपूत तुम्हीं हो माँ के
मत मर, बन प्यारे-बाँके
बात यहाँ जो सही-सही है
दिखता तुम्हें जो कभी नही है
अब तुमको बतलाता हूँ जो
देखी मैंने यहीं-कहीं है।''
''पूनम के चन्दा को मैंने
अक्सर ही मरते देखा है
कभी राहु तो कभी केतु को
इन्हें ही निगलते देखा है।''
''पंडे और पुजारियों को
चन्दन घिसते देखा है
गद्दारों की लाशों को
चन्दन में जलते देखा है
ये विद्रोही हैं विपरीत प्रेम के
पर भारत माँ के लालों को
शोलों पर चलते देखा है।''
''देश-प्रेम के चक्कर में
आस्तीनी साँप बना पाला है
श्वेत-श्वेत कपड़ो के अन्दर
देखा पूरा दिल काला है
रक्षा-सौदों में गद्दारों ने
किया यहाँ बस घोटाला है।''
''गिरगिट सा रंग बदलते
मैंने इंसानों को देखा है
अबला के संग लाल किले पर
हैवानों को देखा है
माँ की सेवा में नहीं , नहीं
झूल गये जो इश्क में फाँसी
ऐसे दीवानों को देखा है।''
''बिन दहेज़ ब्याही बहुएँ
देखा मैंने रोती है
मज़बूर जना को देखा मैंने
पैसों पर वो बिकती है
है खबर नही झूठी भी तनिक सी
हर बार यही देखा नारी को
रोटी जैसी सिकती हैं। ''
''कौम/वाद या जातिवाद
जो इस हद तक बढ़ते हैं
खंडित कर हर खंड-खंड
हरदम ही आगे रहते हैं
बाहर संसद के भीतर भी
ये घटनाएँ घटती हैं
माँ गंगा की आरती में
काशी में बम फटते हैं।''
''देश पे हमला करने वाले
चैन-सुकूँ से सोते हैं
सीमा पर बलिदान हुए जो
उनके घर अब रोते हैं
फिर भी इर्ष्या-ज्वाला है
सब कटते, मरते, जलते हैं।''
''देश-प्रेम की मूर्ति यहाँ
पर मकड़ी का जाला है
राजनेता जोर-शोर से
गोरखधंधे वाला है
चहुँ दिशि इस बाबत है फैली
भ्रष्टाचारी विष हाला है।''
''गाँधी, सुभाष संग शेष सभी
झेले थे ऐसी त्रास कभी
अब कर तांडव रुद्रमय
तू दधीचि, अजगव, पिनाक भी।''
''संसद में देखी है गद्दारी
हर कदम यहाँ है भ्रष्टाचारी
अब इंकलाब तू जगा पुत्र
अब क्यों कैसी है लाचारी। ''
''खून बहा अल्हूत सरासर
कर पवित्र भूधरा यहाँ पर
सबसे पहले नेता-भ्रष्ट को
मार गिरा उनके ही घर।''
''काट डाल आजानु बाहु
जो बन बैठे है केतु-राहू
श्वेत-पोश की करतूतों पर