Saturday, 27 February 2016

न होना था और जो हुआ भी नही


तेरे होने से इतना यकीं हो रहा है,
ना होना था जिसको वही हो रहा है।

तेरे ख़्वाबों में अक्सर  गुजरी हैं रातें,
मेरे दिन में भी अक्सर यही हो रहा है।

तु कहती नही फिर भी सुनता हूँ मैं,
जो कहते हैं सब बस वही हो रहा है।

Tuesday, 16 February 2016

मगर दिल ?


जो किसी दुःख के होने पर - मेरे रोने पर,
मुझे ढाढ़स देते थे - साहस देते थे,
वो भी छूट गए न जाने कहाँ ?

इसका दुःख भी हुआ करता था,
मैं इसको भी सहा करता था,
और ग़फ़लत में रहा करता था,
कि कभी-न-कभी तो ये होना है,
''फिर मिलेंगें'' तो फिर क्यूँ रोना है ?

पर देखो ढाढ़स को भी साहस नहीं ,
यकीं को भी राहत नहीं ,
मैं निरा आदमी - और कोई नहीं।

वो अश्क़ - जो हर बार बहते थे ,
बेवज़ह जारोकतार रहते थे ,
वो भी छूट गए - जाने क्यूँ रूठ गए ,
अब भी उनपे कोई अख़्तियार नहीं ,
देखो मुझे, मैं निरा आदमी - कोई मेरा यार नहीं।

जो राहे-मंजिल थी - मुड़ गयी ,
मैं अवाक्-हताश, भाव-भंगिमा तक उड़ गयी ,
अब तो कुछ भी नही मेरे पास,
न मेरे दोस्त, न अपने, न आँशू,
ना मेरी भाव-भंगिमा, न मेरा मैं.

''मगर दिल ?''
- अरे!
सारी फ़साद यही है।