Friday, 11 April 2014

प्रगमन-२०१४
 (ECONOMICS FAREWELL OF BHU-VNS 
आज मैं अपने सभी सहपाठियों से इस बात के लिए क्षमा चाहता हूँ कि
  मैंने उन्हें कभी न कभी रूश्वा किया होगा और साथ ही ढेर सारा प्यार भी 
चाहता हूँ कि कभी न कभी - मुझे सच्चा समझा होगा या मेरे माज़ी ने उनसे
 वफ़ा की होगी या मेरा उनसे कोई बेहतरीन राब्ता रहा होगा )
 दो पल जो मुझे आपकी किस्मत में बिताने थें 
या मेरी क़िस्मत में जो आप जैसे 'दीवाने' थें 
बिन माँगे मिली थी 'वफ़ा और अदावत'
दुआ रहे वो भी सलामत हम भी सलामत .......
हुई नाशाद तरन्नुम - तबस्सुम की नज़ाकत 
कुछ मौज़ थी मेरी और माज़ी की शरारत 
हँसी 'मदमस्त मुखड़ों' पे जो मेरी वजह थी 
हुआ दिलशाद मेरा दिल कि ये तेरी 'जगह' थी .........
- प्रदीप कुमार सिंह