Sunday, 16 June 2013

रास्ते और रिश्ते


बस ,एक अदद रिश्ते की खातिर 
ठांव-कुठाँव बनी जिंदगी .
नदी के भंवर में फंसी ,
कागज की नाव बनी जिंदगी .
पर्वत से समंदर तक ,
नदी की बहाव बनी ज़िन्दगी .
राख और शरारों के खेल में ,
धुँआ-धुँआ भीगी अलाव बनी जिंदगी .
हर मुकद्दर को भी जीत कर ,
अपनों हारती हर दाव गई जिंदगी .
रफ्ता-रफ्ता हौले-हौले ,
नासूर सी घाव बनी ज़िन्दगी .
कभी गाँव से शहर तो ,
कभी शहर से गाँव गई जिंदगी .
खुदा से ज़िस्त की फेहरिश्त में ,
धूप सी जलती हर छाँव बनी जिंदगी .
फिर भी ,
एक अदद रिश्ते की खातिर ,
नाजाने कितनी सधी दाव चली जिंदगी ..